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MP के चुनाव प्रचार से गायब हैं ये चर्चित चेहरे, क्या है वजह !These famous faces are missing from MP's election campaign, what is the reason?

MP के चुनाव प्रचार से गायब हैं ये चर्चित चेहरे, क्या है वजह !



भोपाल। मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव का प्रचार जोरों पर है. दो चरणों का मतदान हो भी चुका है, मगर राज्य के कुछ चर्चित चेहरे प्रचार करते नजर नहीं आ रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि क्या इन नेताओं ने अपने को प्रचार से दूर रखा है या पार्टी उनसे प्रचार कराने में रुचि नहीं दिखा रही है.राज्य में लोकसभा की कुल 29 सीटें हैं, जहां चार चरणों में मतदान हो रहा है. पहले दो चरण का मतदान 19 अप्रैल और 26 अप्रैल को 12 सीटों पर हो चुका है. आगे दो चरणों में 17 संसदीय क्षेत्र में मतदान होना है.

उमा भारती, प्रज्ञा ठाकुर, यशोधरा राजे सिंधिया चुनाव प्रचार से दूर

राज्य की सियासत पर गौर करें तो बीते लगभग ढाई दशक में संभवत: यह पहला ऐसा चुनाव है जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, पूर्व मंत्री और सिंधिया राजघराने से नाता रखने वाली यशोधरा राजे सिंधिया और भोपाल से सांसद प्रज्ञा ठाकुर प्रचार करती नजर नहीं आ रही हैं. इन तीनों महिला नेताओं के सियासी सफर पर गौर करें तो उमा भारती और प्रज्ञा ठाकुर की पहचान कट्टर हिंदूवादी नेता की रही है, वहीं यशोधरा राजे सिंधिया का नाता सिंधिया राजघराने से है.

उमा और प्रज्ञा भाजपा का हिंदूवादी चेहरा, यशोधरा का चंबल में प्रभाव

उमा भारती की बात करें तो वे केंद्रीय मंत्री रही हैं और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की भी जिम्मेदारी निभा चुकी हैं. उनकी पिछड़े वर्ग में गहरी पैठ है और वह स्वयं लोधी वर्ग से आती हैं. राम मंदिर के आंदोलन में उनकी बड़ी भूमिका रही, वहीं वे हिंदूवादी राजनीति का बड़ा चेहरा भी हैं. उनका राज्य के कई हिस्सों में प्रभाव रहा है. इसी तरह भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर भी हिंदूवादी चेहरा हैं और वह हमेशा अपने बयानों के कारण चर्चा में रहती हैं. उधर, पूर्व मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया का प्रभाव ग्वालियर तथा चंबल क्षेत्र के कई स्थानों पर है.

प्रचार से क्यों दूर हैं भाजपा के ये नेता

भाजपा चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंके हुए है और राष्ट्रीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक के नेताओं को अलग-अलग हिस्सों के प्रचार की कमान सौंपी गई है, लेकिन भाजपा के ये तीन बड़े चेहरे चुनाव प्रचार में नजर नहीं आ रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि क्या इन नेताओं की उम्मीदवारों की ओर से मांग नहीं आई या पार्टी इनका उपयोग नहीं करना चाहती. इन नेताओं ने भी अपनी ओर से प्रचार में दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

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