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एक ही संगठन से निकले दो नेता आमने-सामने, असम की डिब्रूगढ़ लोकसभा सीट का क्या समीकरण !Two leaders from the same organization face to face, what is the equation for Assam's Dibrugarh Lok Sabha seat!

एक ही संगठन से निकले दो नेता आमने-सामने, असम की डिब्रूगढ़ लोकसभा सीट का क्या समीकरण !



गुवाहाटी: असम की डिब्रूगढ़ सीट पर दो ऐसे नेताओं के बीच मुकाबला है, जो पहले एक ही संगठन में थे। उन्होंने अलग-अलग वक्त में इस संगठन की अगुआई की और एक ही लक्ष्य के लिए लड़े। अब लोकसभा पहुंचने की दौड़ में दोनों आमने-सामने हैं। BJP ने अपने केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को इस सीट से उम्मीदवार बनाया है तो विपक्षी I.N.D.I.A. ने असम जातीय परिषद के नेता लुरिनज्योति गोगोई को मैदान में उतारा है। सोनोवाल और गोगोई दोनों ही ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के नेता रहे हैं। डिब्रूगढ़ सीट से सोनोवाल असम गण परिषद के उम्मीदवार के तौर पर 2004 का लोकसभा चुनाव जीते थे। दोनों ने AASU नेता के तौर पर असम की दशकों पुरानी विदेशियों की दिक्कत और असम के मूल निवासियों के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी है।

सोनोवाल 1992 से 1999 तक AASU के अध्यक्ष थे जिसके बाद उन्होंने असम गण परिषद जॉइन की। सोनोवाल 2011 में BJP में शामिल हो गए। 2016 में पहली बार असम में BJP की सरकार बनी तो सोनोवाल मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में सोनोवाल और BJP ने इंडिजीनियस असम की पहचान और कल्चर को बचाने को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया।

कौन हैं लूरिनज्योति

I.N.D.I.A. के उम्मीदवार लूरिनज्योति 2015 से 2020 तक AASU के जनरल सेक्रेट्री थे। 2019 में जब संसद में CAA पास हुआ तब उसके खिलाफ आंदोलन की अगुवाई लूरिनज्योति ने की। CAA विरोधी आंदोलन चल ही रहा था कि आंदोलन के बीच में ही लुरिनज्योति ने असम जातीय परिषद बनाई। 2021 के विधानसभा चुनाव में असम जातीय परिषद ने चुनाव भी लड़ा लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाए।

असम में सीएए मुद्दा!

विपक्षी गठबंधन असम और खासकर डिब्रूगढ़ में CAA को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है। BJP का कहना है कि CAA कोई मुद्दा नहीं है और लोग विकास के कामों से खुश हैं। NBT से बात करते हुए लूरिनज्योति ने कहा कि सोनोवाल को असम के लोगों ने बहुत प्यार दिया। विधायक बनाया, सांसद बनाया, मुख्यमंत्री बनाया, केंद्र सरकार में मंत्री हैं लेकिन उन्होंने असम के लोगों की आवाज नहीं उठाई। यहां CAA विरोधी आंदोलन हुआ, क्योंकि 1971 तक विदेशी घुसपैठियों का भार असम ने लिया। अब धर्म के आधार पर 1971 के बाद का भी भार नहीं ले सकते।

लुरिनज्योति ने कहा कि असम का विरोध जायज है। यह तर्कसंगत है और भावनाओं से भी जुड़ा है इसलिए जब केंद्र सरकार ने CAA लागू किया तब लोगों को उम्मीद थी कि सोनोवाल जनता के नेता होने के नाते इसका कुछ न कुछ विरोध तो जरूर करेंगे। वह जमीनी हकीकत की बात करेंगे, जनता की आवाज को ऊपर तक पहुंचाएंगे और कुछ नहीं कर सके तो कम-से-कम प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ही बताएंगे कि असम दूसरे राज्य की तरह नहीं है और उनका CAA का विरोध जायज है। मगर, सोनोवाल ने कुछ भी स्टैंड नहीं लिया। सोनोवाल पर निशाना साधते हुए लुरिनज्योति ने कहा कि जनता ने उनको इतना प्यार दिया लेकिन उन्हें बदले में क्या मिला। उन्होंने कहा कि वह CAA का विरोध जारी रखेंगे।

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