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क्या यूपी की सियासत में खत्म हो गया बाहुबलियों नेता का दौर ?Is the era of strongmen leaders over in UP politics?

क्या यूपी की सियासत में खत्म हो गया बाहुबलियों नेता का दौर ?

विभाष श्रीर सागर


उत्तर प्रदेश की सियासी पिच पर बाहुबली नेता नदारद नजर आ रहे हैं. पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक एक समय में बाहुबलियों की सियासी तूती बोला करती थी, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में उनका तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है. जौनपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे बाहुबली धनंजय सिंह को मिली सजा ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. सपा ने बाबू सिंह कुशवाहा को जौनपुर से प्रत्याशी बनाकर धनंजय की पत्नी के चुनाव लड़ने की उम्मीदों का झटका दे दिया है.

मुख्तार अंसारी का निधन हो चुका है तो अतीक अहम और उनके भाई अशरफ की हत्या हो चुकी है. मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी जरूर गाजीपुर लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं, लेकिन अतीक अहमद के परिवार से कोई भी किस्मत नहीं आजमा रहा है. विजय मिश्रा, रमाकांत यादव, अतुल राय और रिजवान जहीर जैसे बाहुबली सलाखों के पीछे हैं तो डीपी यादव, गुड्डू पंडित, करवरिया बंधु जैसे बाहुबली राजनीतिक दल कन्नी काट रहे हैं.

बाहुबली बृजेश सिंह और उनके परिवार से भी किसी को टिकट मिलने की संभावना नहीं दिख रही है तो बृजभूषण सिंह के टिकट पर भी सस्पेंस बना हुआ है. अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमन मणि ने कांग्रेस का दामन जरूर थामा, लेकिन टिकट नहीं मिल सका. कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह ने अपने किसी भी करीबी को चुनाव मैदान में अभी तक नहीं उतारा है. इस तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में बाहुबली नेता पूरी तरह नदारद नजर आ रहे हैं.

बता दें कि उत्तर प्रदेश की सियासत में अस्सी के दशक में बाहुबली नेताओं का सियासी दखल बढ़ना शुरू हुआ और नब्बे के दौर में उनकी तूती बोलती थी. हालत यह हो गई थी कि बाहुबली नेताओं के सामने कोई चुनावी संग्राम में उतरना ही नहीं चाहता था. पश्चिम यूपी से लेकर पूर्वांचल तक में बाहुबली नेताओं का पूरी तरह से दबदबा कायम था. हालांकि,सूबे की सियासत ने करवट ली और माननीयों से जुड़े मुकदमों में तेज हुई पैरवी ने बाहुबलियों की कमर तोड़ने में अहम भूमिका निभाई है. अब या तो बाहुबली इस दुनिया में नहीं हैं और जो हैं भी वह सलाखों के पीछे हैं. यही वजह है कि इस चुनाव में बाहुबलियों की दखलंदाजी नहीं दिख रही है.

डीपी यादव और गुड्डू पंडित

पश्चिमी यूपी में डीपी यादव का सियासी दबदबा था. नोएडा के रहने वाले पूर्व मंत्री डीपी यादव बदायूं से चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन बसपा और सपा ने किनारा किया तो उनकी सियासी जमीन खिसक गई. डीपी यादव इस बार अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन सपा और बीजेपी दोनों ने ही उन्हें टिकट नहीं दिया. इसी तरह गुड्डू पंडित बुलंदशहर के रहने वाले हैं, लेकिन अलीगढ़ से लेकर फतेहपुरी सीकरी तक से चुनाव लड़ चुके हैं. इस बार उन्हें किसी भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बनाया है. डीपी यादव और गुड्डू पंडित दोनों ने ही पश्चिमी यूपी के बड़े बाहुबली नेताओं के रूप में पहचान बनाई थी, लेकिन इस बार चुनावी पिच से बाहर हैं.

मुख्तार और अतीक का निधन

मुख्तार अंसारी की पूर्वांचल में तूती बोलती थी, खासकर गाजीपुर, मऊ, बलिया और आजमगढ़ क्षेत्र में. गाजीपुर से मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी सांसद हैं तो उनके करीबी अतुल राय घोसी से चुनाव जीते थे. मुख्तार का हाल ही में निधन हो गया है, लेकिन उनके भाई अफजाल चुनाव लड़ रहे हैं. अतुल राय जेल में बंद हैं और घोसी सीट से उन्हें किसी भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया है, जिसके चलते चुनावी मैदान से पूरी तरह बाहर हो गए.

अतीक अहमद की दबंगई का आलम यह था कि प्रयागराज के इलाके में उनके मर्जी के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता था. फूलपुर सीट से अतीक सांसद रहे, लेकिन पिछले साल प्रयागराज में उनकी और उनके भाई अशरफ की हत्या कर दी गई थी. अतीक के दो बेटे अभी भी जेल में बंद हैं और उनकी पत्नी फरार हैं. इसके चलते अतीक के परिवार से कोई भी सदस्य इस बार के चुनावी मैदान में नजर नहीं आ रहा है. अतीक का सियासी साम्राज्य खत्म होता नजर आ रहा है.

धनंजय को जेल अमर मणि के साथ खेल

अपहरण, रंगदारी के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह को सात साल की सजा होने के चलते सियासी पिच से बाहर हो गए हैं. धनंजय सिंह जौनपुर सीट से चुनावी मैदान में उतरना चाहते थे, लेकिन उन्हें सजा हो गई. इसके बाद अपनी पत्नि को चुनाव लड़ाने की जुगत में थे. माना जा रहा था कि सपा धनंजय की पत्नि को जौनपुर सीट से टिकट दे सकती है, लेकिन रविवार को बाबू सिंह कुशवाहा को प्रत्याशी बना दिया. इसके चलते धनंजय सिंह इस बार लोकसभा चुनाव मैदान में नहीं नजर आएंगे.

कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी ने जेल में रहते हुए अपने भाई अजीतमणि त्रिपाठी को लोकसभा का चुनाव लड़ाया था. बेटे अमनमणि को विधायक बनवाया था, लेकिन इस बार उनके साथ खेला हो गया. अमनमणि त्रिपाठी ने कांग्रेस का दामन थामा और महाराजगंज सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने उनकी जगह चौधरी बीरेंद्र को प्रत्याशी बना दिया. इसके चलते अमरमणि के परिवार से कोई भी चुनावी रण में नहीं हैं.

रमाकांत-उमाकांत पर सियासी ग्रहण

जौनपुर जिले के शाहगंज रेलवे स्टेशन स्थित जीआरपी थाने के 1985 के सिपाही हत्याकांड मामले में आजीवन कारावास की सजा पा चुके बसपा के पूर्व सांसद उमाकांत यादव भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे उमाकांत यादव अब आजीवन सजा काट रहे हैं. उमाकांत ही नहीं उनके भाई रमाकांत यादव जेल में बंद हैं. चार बार के सांसद और पांच बार के विधायक बाहुबली नेता रमाकांत यादव फतेहगढ़ जेल में बंद हैं और आजमगढ़ सीट से धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे हैं. नब्बे के बाद से पहली बार रामकांत परिवार चुनावी मैदान से नदारद है.

विजय मिश्रा और करवरिया बंधु बाहर

आगरा जेल में बंद ज्ञानपुर के पूर्व विधायक विजय मिश्र की सियासी तूती बोलती थी. हत्या, लूट, अपहरण, दुष्कर्म, एके-47 की बरामदगी जैसे अपराधों से नाता रहा. चार बार विधायक रहे विजय मिश्र को वाराणसी की एक गायिका के साथ दुष्कर्म के मामले में 15 साल की सजा हो गई. इस बार के चुनावी मैदान से विजय मिश्रा बाहर हो गए हैं. इसी तरह इलाहाबाद में अतीक अहमद को सियासी चुनौती देने वाले करवरिया बंधू भी इस बार के चुनावी मैदान से नदारद हैं. अतीक के सामने कोई चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होता था तब करवरिया बंधु ही मैदान में उतरे थे. फूलपुर के पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया व उनके छोटे भाई पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की गिनती भी बाहुबली नेताओं में होती रही है, लेकिन इस बार कोई बड़ा नाम प्रभावी नहीं दिख रहा है.

हरिशंकर तिवारी के बेटे चुनावी में उतरे

पूर्वांचल में एक समय हरिशंकर तिवारी का पूरी तरह से दबदबा था. हरिशंकर तिवारी की गिनती बाहुबली नेता के तौर पर होती थी, लेकिन इस बार के चुनावी मैदान में हरिशंकर के तिवारी के बेटे भीम शंकर तिवारी को डुमरियागंज सीट से सपा ने प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा पूर्वांचल में कोई दूसरा बाहुबली नेता के परिवार से कोई नजर नहीं आ रहा है. बुंदेलखंड में डकैत ददुआ उर्फ शिव कुमार पटेल की सियासी तूती बोला करती थी. मिर्जापुर से उनके भाई बाल कुमार पटेल सांसद रह चुके हैं. इसके बाद बांदा सीट से भी चुनाव लड़े, लेकिन इस बार चुनावी मैदान में नहीं नजर आ रहे हैं.

हमीरपुर के कुरारा गांव के रहने वाले अशोक चंदेल बाहुबल के दम पर चार बार विधायक और एक बार सांसद रहे. अशोक चंदेल इस समय एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या के मामले में आगरा जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, जिसके चलते चुनावी मैदान में नहीं हैं. ऐसे ही फर्रुखाबाद के इंस्पेक्टर हत्याकांड मामले में मथुरा जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे माफिया अनुपम दुबे का प्रभाव इस बार चुनाव में नहीं दिखेगा. बीजेपी के कद्दावर नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी हत्याकांड में पूर्व विधायक विजय सिंह छह वर्षों से जेल में बंद हैं. विजय सिंह का दमखम कमजोर पड़ चुका है.

बृजेश सिंह के परिवार से भी किसी को टिकट नहीं

उन्नाव के बाहुबली कुलदीप सेंगर जेल में बंद जबकि एक समय उनकी तूती बोलती थी. इस तरह प्रतापगढ़ जिले में रघुराज प्रताप सिंह का तूती बोला करती थी, उनके रिश्ते में भाई अक्षय प्रताप सिंह सांसद रह चुके हैं. इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरे थे. इसी तरह बृजभूषण शरण का अपना गोंडा, कैसरगंज में दबदबा है, लेकिन बीजेपी ने अभी तक उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया है. इसी क्षेत्र में बाहुबली और तीन बार के सांसद रिजवान जहीर जेल में बंद हैं, जिसके चलते चुनावी मैदान से बाहर हैं. माफिया बृजेश सिंह का पूर्वांचल में अपना दबदबा है, लेकिन इस बार उनके परिवार के किसी को टिकट नहीं मिला है.

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